चित्रपट / एल्बम :तीन देवियाँ (1965)
संगीतकार : एस.डी.बर्मन
गीतकार : मजरूह सुल्तानपुरी
गायक : मो.रफ़ी
कहीं बेख़याल होकर, यूँ ही छू लिया किसी ने
कई ख़्वाब देख डाले, यहाँ मेरी बेख़ुदी ने
कहीं बेख़याल होकर...
मेरे दिल में कौन है तू, के हुआ जहाँ अन्धेरा
वहीं सौ दिये जलाये, तेरे रुख़ की चाँदनी ने
कई ख़्वाब देख...
कहीं बेख़याल होकर...
कभी उस परी का कूचा, कभी इस हसीं की महफ़िल
मुझे दर-ब-दर फिराया, मेरे दिल की सादग़ी ने
कई ख़्वाब देख...
कहीं बेख़याल होकर...
है भला सा नाम उसका, मैं अभी से क्या बताऊं
किया बेकरार अक्सर, मुझे एक आदमी ने
कई ख़्वाब देख...
कहीं बेख़याल होकर...
अरे मुझपे नाज़ वालों, ये नयाज़मन्दियां क्यों
है यही करम तुम्हारा, तो मुझे न दोगे जीने
कई ख़्वाब देख...
कहीं बेख़याल होकर...
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