चित्रपट / एल्बम बैजू बावरा (1952)
संगीतकार : नौशाद
गीतकार : शकील बदायुनी
गायक : मो.रफी
निर्धन का घर लूटने वालों, लूट लो दिल का प्यार
प्यार वो धन है जिस के आगे, सब धन हैं बेकार
इन्सान बनो, इन्सान बनो, कर लो भलाई का कोई काम
दुनियाँ से चले जाओगे, रह जायेगा बस नाम
इस बाग में सूरज भी निकलता हैं लिए गम
फूलों की हंसी देख के रो देती है शबनम
कुछ देर की खुशियाँ हैं, तो कुछ देर का मातम
किस नींद में हो जागो, ज़रा सोच लो अंजाम
इन्सान बनो...
लाखों यहाँ शान अपनी दिखाते हुए आये
दम भर के लिए नाच गये धूप में साये
वो भूल गये थे के ये दुनियाँ हैं सराये
आता है कोई सुबह, तो जाता है कोई शाम
इंसान बनो...
क्यों तुमने लगाए हैं यहाँ ज़ुल्म के ढेरे
धन साथ ना जायेगा, बने क्यों हो लुटेरे
पीते हो ग़रीबों का लहू शाम सवेरे
खुद पाप करो, नाम हो शैतान का बदनाम
इंसान बनो...
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